SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ युगवीर-निवन्धावली वल्कि आपका तो यहाँ तक कहना है कि "भगवान् सर्वजने जो उपदेश दिया है वही धर्म है। और इसलिये दूसरा कोई धर्म नही~-सर्वज्ञके उपदेशसे जो कुछ बाहर है-श्रावको अथवा गृहस्थोके द्वारा कल्पित हुआ है वह सब अधर्म है, ऐसा समझना चाहिए। शायद इसीलिये शास्त्रीजी आर्प-वाक्यो अथवा जैनशास्त्रोको छपाना 'अधर्म' समझते हो? क्योकि सर्वज्ञका जो उपदेश जैनशास्त्रोके रूपमे सकलित है उसमे शास्त्रोके छपानेका कोई विधान नहीं है और न छापनेकी विद्या ( मुद्रणकला ) का ही उसमे कही उल्लेख पाया जाता है। तब तो, तीर्थयात्रा आदिके लिये रेलगाडीपर सफर करना, मोटर, साइकिलपर चलना, तारके-द्वारा समाचार भेजना, टेलीफोनसे बाते करना, सिनेमा अथवा बाइस्कोपका तमाशा देखना, ग्रामोफोन वाजेका सुनना-सुनाना, फोटो खेचना-खिचवाना, भगवानकी मूर्तियो अथवा मुनियोके फोटो मन्दिरमे लटकाना, पूजा प्रतिष्ठाकी चिट्ठियाँ छपवाना और उन्हे डाकसे भेजनेके लिये लैटरवाक्समे डालना, आधुनिक घडियोको जेबमे रखना अथवा कलाईसे वॉधना और उनमे समयपर चाबी देते रहना, फाउन्टेनपेनसे लिखना, ऐनक लगाना अथवा चश्मा लगाकर स्वाध्याय करना, ऐंजिनसे आटा पिसवाना और चावल कुटवाना, मिलोके वने वस्त्र पहनना अथवा वैसे वस्त्र पहनकर पूजन करना, जर्मन सिलवर और ऐलोमीनियमके बर्तनोमे खाना खाना या पूजन करना, गाडीके पहियोपर रवरको हाल चढवाना, रवरका जूता अथवा नये फैशनके कोट पतलून तथा सूटर बनियान आदि पहनना, मकानोमे बिजलीकी रोशनी करना, मिट्टीका तेल जलाना और बिजली अथवा मिट्टीके तेलकी रोशनीमे शास्त्र
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy