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________________ १७१ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश गते रहसि निःशंकं निःशंकस्तामसौ युवा। अरीरमद्यथाकाम कामपाशवशो वशां ॥३९।। -हरिवशपुराण । अर्थात्-एक दिन शातायुधका पुत्र शीलायुध, जो श्रावस्ती नगरीका राजा था, तापसाश्रममें गया। वहाँ वह तापसकन्या ऋषिदत्ता अकेली थी और उसने ही सुन्दर भोजनसे राजाका अतिथि-सत्कार किया। ये दोनो अति रूपवान् थे, इनके परस्पर केलिकलह उपस्थित होने—अथवा स्नेहके बढनेसे-दोनोके प्रेमने चिरकालसे पालन की हुई मर्यादाको तोड डाला। और वह कामपाशके वश हुआ युवा शीलायुध उस कामपाशवशवर्तिनी ऋषिदत्ताको एकान्तमे लेजाकर उससे नि शक हुआ यथेष्ट कामक्रीडा करने लगा। पं० दौलतरामजी भी अपनी टीकामे लिखते हैं-"ऋषिदत्ता तापसकी कन्या अकेली हुती तानै शीलायुधको मनोहर आहार कराया, ए दोऊ ही अतुल रूप, सो इनके प्रेम वढा, सो चिरकालकी मर्यादा हुती सो भेदी गई। एकात विपै दोऊ नि शक भये यथेष्ट रमते भये।" और प० गजाधरलालजी ३८ वे पद्यके अनुवादमे लिखते है-'वे दोनो गाढ प्रेम-वधनमें वध गये, उनके उस प्रेम-वधनने यहाँ तक दोनोपर प्रभाव जमा दिया कि न तो ऋपिदत्ताको अपनी तपस्विमर्यादाका ध्यान रहा और न राजा शीलायुधको ही अपनी वशमर्यादा सोचनेका अवसर मिला।" और इसके बाद आपने यह भी जाहिर किया है कि "ऋषिदत्ताको अपने अविचारित कामपर बडा पश्चात्ताप हुआ, मारे भयके उसका शरीर थरथर कॉपने लगा।" । श्रीजिनसेनाचार्यके वाक्यो और उक्त टीका-वचनोसे यह
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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