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________________ १६६ युगवीर-निवन्धावली हैं । भरत चक्रवर्तीने ( तदनुसार और भी चक्रवर्तियोंने ) म्लेच्छराजादिकोकी वहुत-सी कन्याओसे विवाह किया है, वे हीन-कुलजातिकी कन्याओसे विवाह कर लेना अनुचित नही समझते थे, उन्होने म्लेच्छोकी कुलशुद्धि करने और जिनके कुलमे किसी वजहसे कोई दोप लग गया हो उन्हे भी शुद्ध कर लेनेका विधान किया है। उस वक्तसे न मालूम कितने म्लेच्छ शुद्ध होकर आर्य-जनतामे परिणत हुए। इतिहाससे कितने ही म्लेच्छ-राजादिकोका आर्य-जनतामे शामिल होनेका पता चलता है। पहले जमानेमे दुष्कुलोसे भी उत्तम कन्याएँ ले ली जाती थी, राजा श्रोणिकके पिताने भील कन्यासे विवाह किया और सम्राट चन्द्रगुप्तने एक म्लेच्छ-राजाकी कन्यासे शादी की। ऐसी हालतमे समालोचकजीने उदाहरणके इस अशपर जो कुछ भी आक्षेप किये हैं वे सब मिथ्या तथा व्यर्थ हैं और उनकी पूरी नासमझी प्रकट करते हैं। __ अव उदाहरणके तृतीय अश–'प्रियगुसुन्दरीसे विवाह'को लीजिये। व्यभिचारजातों और दस्सोंसे विवाह लेखकने लिखा था कि "प्रियंगसुन्दरीके पिताका नाम 'एणीपुत्र' था। यह एणीपुत्र 'ऋषिदत्ता' नामकी एक अविवाहिता तापस-कन्यासे व्यभिचारद्वारा उत्पन्न हुआ था। प्रसव-समय उक्त ऋपिदत्ताका देहान्त हो गया और वह मरकर देवी हुई, जिसने एणी अर्थात् हरिणीका रूप धारण करके जगलमे अपने इस नवजात शिशुको स्तन्यपानादिसे पाला और पाल-पोषकर अन्तको शीलायुध राजाके सपुर्द कर दिया। इससे प्रियंगुसुन्दरीका पिता ‘एणीपुत्र' व्यभिचारजात था, जिसको आजकलकी भाषामें
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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