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________________ युगवीर-निवन्धावली जब कुल ही शुद्ध नही तब जाति-शुद्धि की कल्पना तो बहुत दूरकी बात है। भरतजीने, अपने ऐसे ही विचारोके अनुसार, यह जानते हुए भी कि म्लेच्छोका कुल शुद्ध नहीं है, उनकी बहुत-सी कन्याओसे विवाह किया, जिनकी संख्या आदिपुराणमे, मुकुटबद्ध राजाओकी सख्या जितनी बतलाई है। साथ ही, भरतजीकी कुलजातिसपन्ना स्त्रियोकी सख्या उससे अलग दी है । यथा . - कुलजात्यभिसम्पन्ना देव्यस्तावत्प्रमाः स्मृताः। रूपलावण्यकान्तीनां याः शुद्धाकरभूमयः ॥३४॥ म्लेच्छराजादिभिर्दत्तास्तावन्त्यो नृपवल्लभाः। अप्सरःसकथाः क्षोणी यकाभिरवतारिताः ॥३५॥ -३७ वॉ पर्व। इनमेसे पहले पद्यमे आर्य-जातिकी स्त्रियोका उल्लेख है और उन्हे 'कुलजात्यमिसंपन्ना' लिखा है। और दूसरे पद्यमे म्लेच्छजातिके राजादिकोकी दी हुई स्त्रियोका वर्णन है। इससे जाहिर है कि भरत-चक्रवर्तीने म्लेच्छोकी जिन कन्याओसे विवाह किया वे कुल-जातिसे सपन्न नही थी अर्थात्, उच्च कुल-जातिकी नही थी। साथ ही, 'म्लेच्छराजादिभिः' पदमे आए हुए 'आदि' शब्दसे यह भी मालूम होता है कि वे म्लेक्छ-कन्याएँ केवल म्लेच्छराजाओकी ही नही थी, बल्कि दूसरे म्लेच्छोकी भी थी। ऐसी हालतमे समालोचकजीकी उक्त समझ कहाँ तक ठीक है और उनके उस लिखनेका क्या मूल्य है, इसे पाठक स्वय समझ सकते हैं। लेखक तो यहॉपर सिर्फ इतना और बतला देना चाहता है कि पहले जमानेमे दुष्कुलोसे भी उत्तम कन्याएँ ले ली जाती थी और उन्हे अपने सस्कारो द्वारा उसी तरहपर ठीक कर
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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