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________________ १६० युगवीर-निवन्धावली सुझाया है किन्तु उसके पिताकी बाबत सिर्फ इतना ही लिखा था कि 'वह आर्य तथा उच्च जातिका मनुष्य नही था', फिर भी समालोचकजीने, जराकी नीचताका निपेध करते हुए, जो यह लिखनेका कष्ट उठाया है कि "नीच हम ( उसे ) तव ही मान सकते हैं जब कि उस कन्याके जीवन-चरितमें कुछ नीचता दिखलाई हो," इसका क्या अर्थ है वह कुछ समझमे नही आता ! क्या समालोचकजी इसके द्वारा यह प्रतिपादन करना चाहते हैं कि 'किसी तरहपर अच्छे सस्कारोमे रहनेके कारण नीचजातिमे उत्पन्न हुई कन्याओके जीवनचरितमे यदि नीचताकी कोई बात न दिखलाई पडती हो तो हम उन्हे ऊँच मानने, उनसे ऊँच जातियोकी कन्याओ जैसा व्यवहार करने और ऊँच' जातिवालोके साथ उनके विवाह-सम्बन्धको उचित ठहरानेके लिये तैयार हैं ? यदि ऐसा है तब तो आपका यह विचार कितनी ही दृष्टियोसे अभिनन्दनीय हो सकता है, और यदि वैसा कुछ आप प्रतिपादन करना नही चाहते तो आपका यह लिखना विलकुल निरर्थक और अप्रासगिक जान पडता है। हमारे समालोचकजीको एक बड़े फिक्रने और भी घेरा है और वह है मरत-चक्रवर्तीका म्लेच्छ कन्याओसे माना हुआ ( admitted ) विवाह। आपकी समझमे, म्लेच्छोको उच्चजातिके न माननेपर यह नामुमकिन ( असम्भव ) है कि भरतजी नीचजातिकी कन्याओसे विवाह करते, और इसीलिये आप लिखते हैं - "यह कभी सम्भव नही हो सकता कि जो भरत गृहस्थावस्थामे अपने परिणाम ऐसे निर्मल रखते थे कि जिन्हे दीक्षा लेते ही केवलज्ञान उत्पन्न हो गया और जिनके लिये "भरत
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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