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________________ १५६ युगवीर-निवन्धावली मलिन और दूषित आचार वाले मनुष्यो का ही नाम है, जिन लोगोमे कुल-परम्परासे ऐसे कदाचार रुढ हो जाते हैं उन्हीकी म्लेच्छ सज्ञा पड जाती है। श्रीविद्यानदाचार्य, कर्मभूमिज म्लेच्छोका वर्णन करते हुए, जिनमे आर्यखडोद्भव और म्लेच्छखण्डोद्भव दोनो प्रकारके म्लेच्छ शामिल हैं, साफ लिखते हैं - कर्मभूमिभवा म्लेच्छाः प्रसिद्धा यवनादयः । स्युः परे च तदाचार-पालनाबहुधा जना ॥ -तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक । अर्थात्-कर्मभूमियोमे उत्पन्न हुए जो म्लेच्छ हैं उनमे यवनादिक तो प्रसिद्ध ही हैं बाकी यवनादिकसे भिन्न जो दूसरे बहुतसे म्लेच्छ हैं वे सब यवनादिको ( यवन, शवर, पुलिंदादिको) के आचारका ही पालन करते हैं और इसीसे म्लेच्छ कहलाते हैं। इससे साफ जाहिर है कि म्लेच्छखण्डोके म्लेच्छोका आचार यहाँके शक, यवन, शवरादि म्लेच्छोके आचारसे भिन्न नहीं है और इसलिये यह कहना कि 'म्लेच्छखडोके म्लेच्छोमै हिंसा तथा मासभक्षणादिको सर्वथा प्रवृत्ति नही', आगमे बाग लगाना है। श्रीविद्यानदाचार्य म्लेच्छोके नीचगोत्रादिकी उदय भी बतलाते है-लिखते हैं 'उच्च-गोत्रादिकके उदयसे आर्य और नीचगोत्रादिके उदयसे म्लेच्छ होते हैं।' यथा - "उच्चैर्गोत्रोदयादेरार्या नीचैर्गोत्रादेश्च म्लेच्छाः ।" तब, क्या समालोचकजी इन विधानोके कारण, अपने उक्त वाक्योंके अनुसार, श्री विद्यानदाचार्यकी समझको "बिलकुल मिथ्या' और उनके इस नीच' आदि कथनको “सर्वथा मिथ्या और शास्त्र-विरुद्ध" कहनेका साहस करते हैं ? यदि नही तो उन्हे अपने उक्त निरर्गल और नि सार वाक्योके लिये पश्चात्ताप
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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