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________________ १२८ युगवीर-निवन्वावली फिर भी समालोचकजी नेमिपुराणमे यह स्वप्न देख रहे हैं कि उसमे देवकीको कसके मामाकी पुत्री लिखा है और उसीके निम्न वाक्योके आधारपर यह प्रतिपादन करना चाहते हैं कि देवकी कसके मामाकी लडकी थी, इसलिये कस उसे बहन कहता था और इसीसे जिनसेनाचार्यने, हरिवशपुराणमे, उसे कसकी वहन रूपसे उल्लेखित किया है - तत स्वय समादाय पितुः राज्यं स कसवाक् । गौरवेण समानीय वसुदेव स्वपत्तनम् ।। ८६ ।। तदा मृगावतीदेशे भूर्भुजादेशनं ( १ ) पुण्त् । कसमातुलजानीता['ता धनदेव्याव्यां] समुद्भवा[व] ||८७|| देवकी की नामतां त:]कन्यां कांचिदन्य [ न्यां सुरांगना[नां] । महोत्सवैर्ददौ तस्मै सोऽपि साधैं तया स्थितः ।। ८८ ॥ इन पद्योमेसे मध्यका पद्य न० ८७, यद्यपि, ग्रन्थकी सब प्रतियोमे नही पाया जाता-देहलीके नये मदिरकी एक प्रतिमे भी वह नही है-और न इसके अभावसे ग्रन्थके कथन सम्बधमे ही कोई अन्तर पडता है, हो सकता है कि यह 'क्षेपक' हो। फिर भी देवकीको कस तथा अतिमुक्तककी वहन ही लिखा है जिनपर जिनसेनके हरिवंशपुराणमें वैसा लिखा गया है । यथा. "आनीय मथुरा मक्त्याऽभ्याथ प्रददौ निजां । स्वसार देवकी तस्मै सम्मान्य मृदुभाषया ।। ६८ ॥ "सविभ्रमा हसतीति प्राह जीवद्यशा स्वसु । देवक्या वीक्ष व वस्त्रमृतुकालविडवितम् ॥ ७१ ॥ "वरमज्ञातवृत्तान्त प्रददौ स्वच्छधी स्वय । तथेत्युक्तवा स्वसुर्धातृगेहे कि च न कुत्सितं ।। ८० ॥" -१२ वॉ सर्ग । १. इस प्रकारकी ब्रैकटोके भीतर जो पाठ दिया है वह शुद्ध पाठ है और ग्रथकी दूसरी प्रतियोमें पाया जाता है।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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