SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ युगवीर-निवन्धावली पति और दशार्णपुरके राजा रूपसे जिन देवसेनका उल्लेख पाया जाता है और जिनके उल्लेखोको, इन ग्रथोसे, समालोचनामे उद्धृत किया गया है वे ये ही राजा उग्रसेनके भाई देवसेन हैउनसे भिन्न दूसरे कोई नही है। नेमिपुराणमे तो उत्तरपुराणकी उक्त दोनो पक्तियाँ भी ज्यो-की-त्यो उद्धृत पाई जाती है बल्कि इनके बादकी "रवसा नन्दयशा स्त्रीत्वमुपगम्य निदानत" यह तीसरी पक्ति भी उद्धृत है और ग्रन्थके प्रारभमे अपने पुराणकथनको प्रधानत गुणभद्रके पुराण ( उत्तरपुराण) के आश्रित सूचित किया है । यथा . यत्पुराण पुरोक्तं गुणभद्रादिसूरिभिः । तद्वक्ष्ये तुच्छबोधोऽहं किमाश्चर्यमतः पर ॥२८॥ पाण्डवपुराणमे, गुणभद्रकी स्तुतिके बाद स्पष्ट लिखा ही है। कि उनके पुराणार्थका अवलोकन करके यह पुराण रचा जाता है । यथा . गुणभद्रभदंतोऽत्र भगवान् भातु भूतले। पुराणाद्री प्रकाशार्थ येन सूर्यायित लघु ॥ १९ ॥ तत्पुराणार्थमालोक्य धृत्वा सारस्वत श्रुतम् । मानसे पाण्डवानां हि पुराण भारत ब्रुवे ॥२०॥ जिनदास ब्रह्मचारीका हरिवशपुराण प्राय जिनसेनाचार्यके हरिवशपुराणको सामने रखकर लिखा गया है और उसमे जिनसेनके वाक्योका बहुत कुछ शब्दानुसरण पाया जाता है । जिनदासने स्वय लिखा भी है कि गौतमगणधरादिके वाद हरिवशके चरित्रको जिनसेनाचार्यने पृथ्वीपर प्रसिद्ध किया है। और उन्हीके वाक्योपरसे यह चरित्र अपने तथा दूसरोके सुख-बोधार्थ यहाँ उद्धृत किया गया है। यथा -
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy