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________________ ११६ युगवीर-निवन्धावली घटना - विशेषको प्रदर्शित करनेवाला कितना स्पष्ट उदाहरण है । बाबू बिहारीलालजी अग्रवाल जैन बुलन्दशहरीने अपने ' अग्रवाल इतिहास' में भी अग्रवालोकी उत्पत्तिका यह सब इतिहास दिया है। इतनेपर भी समालोचकजी प्राचीन कालके ऐसे विवाह - सम्बन्धोपर, जिनके कारण बहुत-सी श्रेष्ठ जनताका इस समय अग्रवाल वशमे अस्तित्व है, घृणा प्रकाशित करते हैं और उनपर पर्दा डालना चाहते हैं, यह कितने बडे आश्चर्यकी बात है ।। , पाठकजन, यह वात मानी हुई है और इसमे किसीको आपत्ति नही कि 'कस' उन यदुवशी राजा उग्रसेनका पुत्र था, जिनका उल्लेख ऊपर उद्धृत की हुई वंशावली मे भोजक - वृष्टिके पुत्ररूपसे पाया जाता है । यह कंस गर्भमे आते ही माता - पिताको अतिकष्टका कारण हुआ और अपनी आकृतिसे अत्युग्र जान पडता था, इसलिये पैदा होते ही एक मजूषामे बन्द करके इसे यमुना मे वहा दिया गया था । दैवयोगसे कौशाम्बीमे यह एक कलाली ( मद्यकारिणी ) के घर पला, शस्त्र विद्यामे वसुदेवका शिष्य बना और वसुदेवकी सहायता से इसने महाराज जरासंधके एक शत्रुको बाँधकर उनके सामने उपस्थित किया । इसपर जरासधने अपनी कालि सेना रानीसे उत्पन्न 'जीवद्यशा' पुत्रीका विवाह कंससे करना चाहा । उस वक्त कसका वश-परिचय पानेके लिये जब वह मद्यकारिणी वुलाई गई और वह मजूषा सहित आई तो उस मजूषाके लेखपरसे जरासंधको यह मालूम हुआ कि कंस मेरा भानजा है— मेरी बहन पद्मावतीसे उग्रसेन द्वारा उत्पन्न हुआ है - और इसलिये उसने वडी खुशीके साथ अपनी पुत्रीका विवाह उसके साथ कर दिया । इस विवाह के अवसरपर कसको अपने पिता उग्रसेनकी इस निर्दयताका हाल मालूम करके — कि उसने - ·
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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