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________________ युगवीर-निवन्धावली यही वह सब वशावली है जिसका सार लेखकने वसुदेवजीके उदाहरणको प्रारम्भ करते हुए दिया था। उसमे 'उग्रसेन'की जगह 'देवसेन' बना देनेसे वह उक्त उल्लेखपर भी ज्यो-की-त्यो घटित हो सकती है। इस वशावलीमे आगे समुद्रविजयादि तथा उग्रसेनादिकी सततिका कोई उल्लेख नही है। उसका उल्लेख ग्रन्थमे खड-रूपसे पाया जाता है और उन खड-कथनोपरसे ही देवकी नृप भोजकवृष्टिकी पीत्री तथा राजा सुवीरको प्रपौत्री और इसलिए वसुदेवकी भतीजी निश्चित होती है। __ यहाँ, उन खण्ड-कथनोका उल्लेख करनेसे पहले, मैं अपने पाठकोको इतना और बतला देना चाहता हूँ कि, यद्यपि भाषा हरिवशपुराणके पृष्ठ ३३६ और ३६५ वाले उक्त दोनो उल्लेखोपरसे यह पाया जाता है कि प० गजाधरलालजीने देवकोको राजा उग्रसेनके भाई देवसेन ( राजा) की पुत्री बतलाया है और देवसेनकी स्त्रीका नाम 'धन्या' (धनदेवी) तथा उनके वासस्थानका नाम 'दशार्णपुर' प्रकट किया है। परन्तु उनका यह कथन सन् १९१६ का है, जिस सालमे कि उनका भाषा हरिवशपुराण प्रकाशित हुआ था। इससे करीव तीन वर्प वाद पर्व ७० मे 'गाधारी' नामकी पुत्रीका उल्लेख जरूर मिलता है। परन्तु वहाँ वसुदेवके पिता और उग्रसेनके पिता टोनोको सगे भाई बतलाया है । और दोनोके पिताका नाम शूरवीर तथा पितामहका सूरसेन दिया है । यथा : अवार्य निजशौर्येण निर्जिताशेषविद्विष । ख्यातशौर्यपुराधीशसूरसेनमहीपते. ॥ ९३ ॥ सुतस्य शूरवीरस्त्र धरिण्याश्च तनूभवौ । विख्याताऽन्धकवृष्टिश्च पतिवृष्टिनरादिवाक् ॥९॥
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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