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________________ विवाह-क्षेत्र प्रकाश ९९ पुस्तकमे कोई नया नहीं है, बल्कि वह समाजके चार प्रसिद्ध पत्रो और एक ग्रन्थमे चर्चा होकर बहुत पहलेसे समाजके विद्वानोंके सामने रक्खा जा चुका है और उसकी सत्यतापर इससे पहले कोई आपत्ति नही की गई । अथवा यो कहिये कि समाजके विद्वानोने उसे आपत्तिके योग्य नही समझा। ऐसी हालतमे समालोचकजीका इस विषयको लेकर व्यर्थका कोलाहल मचाना और लेखकके व्यक्तित्वपर भी आक्रमण करना उनके अकाण्डताण्डव तथा अविचारको सूचित करता है । लेखकने देवकीके विवाहकी घटनाका उल्लेख करते हुए लिखा था "देवकी राजा उग्रसेनकी पुत्री, नृपमोजकवृष्टिकी पौत्री और महाराज सुवीरकी प्रपौत्री थी। वसुदेब राजा अन्धकवृष्टिके पुत्र और नृपशूरके पौत्र थे। ये नृप 'शूर' और देवकीके प्रपितामह 'सुवीर' दोनो सगे भाई थे। दोनोके पिताका नाम 'नरपति' और पितामह (बाबा) का नाम 'यदु' था। ऐसा श्रीजिनसेनाचार्यने अपने हरिवशपुराणमे सूचित किया है और इससे यह प्रकट है कि राजा उग्रसेन और वसुदेवजी दोनो आपसमे चचाताऊजाद भाई लगते थे और इसलिये उग्रसेनकी लडकी 'देवकी' रिश्तेमे वसुदेवकी भतीजी ( भ्रातृजा ) हुई। इस देवकीसे वसुदेवका विवाह हुआ, जिससे स्पष्ट है कि इस विवाहमे गोत्र तथा गोत्रकी शाखाओका टालना तो दूर रहा एक वश और एक कुटुम्बका भी कुछ खयाल नही रक्खा गया ।" इस कथनसे स्पष्ट है कि इसमे देवकी और वसुदेवकी रिश्तेदारीका-उनके पूर्व सम्बन्धका जो कुछ उल्लेख किया गया है वह सब श्रीजिनसेनाचार्यके हरिवशपुराणके आधारपर किया गया है। और इसलिए एक समालोचककी हैसियतसे समालोचकजीको
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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