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________________ समयसार-चमन ( ७५ ) वास्तविक ज्ञानी कौन ? सुख, दुःख, राग, द्वेष, मोहादिक हैं सब कर्मों की संतान । स्पर्श रूप रस गंध सूक्ष्म या वादरादि नोकर्म प्रधान । चेतन निश्चय से इनका नहि कर्ता है, ये जड़ परिणाम । यों अनुभव कर्ता हि वस्तुतः ज्ञानी कहलाता निष्काम । ( ७६ ) ___ ज्ञानी पर द्रव्य को जानता, किन्तु कर्ता नही । पुद्गलकर्म जानता ज्ञानी भेद ज्ञान कर विविध प्रकार; किन्तु नहीं तद् प परिणमन करता किंचित् किसी प्रकार । परको ग्रहण न करता है वह, उनमें नहि होता उत्पन्न । अपना परमें हो सकता नहि कर्ता - कर्मभाव निष्पन्न । ( ७७ ) .. ज्ञानी अपने रागादि को जानता हुआ भी तद्रूप परिणमन नही करता । जानी, कर्मोदय निमित्त से-जो होते दुर्भाव अशेषउन्हें जानता है नैमित्तिक, नहि तद्प परिणमें लेश । प्रादि मध्य या अन्त कभी भी नहिं परिणमता वह पररूप । तत्पर्याय ग्रहण नहि करता नही उपजता बन तद्रूप । (75) हि-निश्चय से। निष्काम-जिसे सांसारिक भोगों एवं वस्तुओं की चाह न हो। (76) तदूप-उस रूप । निष्पा -सिध्द । (77) अशेष-समस्त । तत्-मह, उसकी।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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