SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३ ( ५६/१ ) शंका - समाधान यदि ये जीव नही हैं, केवल पुद्गल के परिणाम अशेषतो फिर किया जिनागम में क्यों जोव मान इनका व्यपदेश ? सुनो, भव्य ! एकांत नहीं है, चेतन भी पुद्गल के संगसविकारी बन फिरे भटकता रहै बदलता अपना रंग । ( ५६/२ ) रंगे हुए वस्त्रों में होता 'नील पीत' का ज्यों व्यवहार । निश्चय शुक्ल स्वभाव वस्त्र का, नीलपोत औपाधिकभार । त्यों उल्लिखित गुणस्थानादिक संयोगज परिणाम अनेकजीव कहे व्यवहार दृष्टि से, निश्चय-शुद्ध चेतना-एक । ( ५७ ) ___ वर्णादिक जीव के क्यों नही है ? वर्णादिक पुद्गल परिणामों का अनादि से चेतन संगसंयोगज सम्बन्ध मात्र है, नहि तादात्म्य उभय सर्वाग । नीर क्षीरवत् मिले हुए भी लक्षण से दोनों है भिन्न । पुद्गल जड़ स्वभाव, पर चेतन उपयोगाधिक गुण सम्पन्न । (56/1) व्यपदेश-भेद कथन। (57) संयोगज-दो वस्तुओं के मेल से उत्पन्न होने वाला । तादात्म्य-ऐक्यपना । उभय-बोनों। सांग-पूर्णाश में ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy