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________________ जीवाजीवाधिकार ( १४/२ ) दृष्टांतों द्वारा इसी का स्पष्टीकरण कमल पत्र ज्यों जल में रहता नित प्रबद्ध प्रस्पर्शस्वभाव ; घट कपाल में मृद् अनन्य ज्यों जल में है उष्णत्व विभाव । उठते है तूफान उदधि में, पर वह रहता नियत महान । स्वर्ण दृष्टि में वर्णादिक सब ही जाते ज्यों अंतर्धान । जिन शासन का ज्ञाता कौन ? शुद्ध दृष्टि से त्यों निजात्म को कर्म बन्धन स्पर्शविहीन जो अनन्य अविशेष विलोके असंयुक्त रागादिक होन । द्रव्य-भाव श्रुत से अनुभावित जिसे शुद्ध चिद्रूप अनूप । वही पूर्ण जिन शासन ज्ञाता-दृष्टा है अनुभवरस कूप । ( १५/२) निश्चय नय की विशेषता निश्चय नय की दृष्टि निराली चतुर जौहरी बत् अम्लान । समल स्वर्ण में भी जो करती शुद्धस्वर्ण की वर पहिचान । यह इंगित करती-स्वभावतः जीवमात्र है सिद्ध समान । पद परमात्म प्राप्त करने की रखते हम सामर्थ्य महान । (15/1) अनुभावित-अनुभव में आया हुआ। कूप-कुमा। (152) इंगित-शारा। सामर्थ-वाक्ति ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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