SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० । १४० बुद्धि भ्रम क्यों होता है ? १३७ राग द्वेष परिणाम निश्चय से जीव पर में कर्ता-कर्म की मान्यता उपचार है। १३८ विषयो मे राग द्वेष जीव के अज्ञान पुद्ग कर्म जीव को विकारी नही से होता है । १५१ बनाता। १३८ प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान का जीव भी पुद्गल मे विकार उत्पन्न रवरूप १५३ नहीं करता १३९ आलोचना और चारित्र का स्वरूप १५४ पुद्गल कर्म की परणति पुद्गल दुखवीज कर्म बध और उसका कारण १५४ कृत ही है। १३९ वस्तुत आलोचन, प्रतिक्रमण और जीव की विकार परणति जीव की प्रत्याख्यान क्या है ? १५५ ज्ञान, कर्म और कर्मफल चेतना १५५ पर कर्तृव्य का पूर्व पक्ष चेतनात्रय का शुद्ध और अशुद्ध चेतना में विभाजन १५५ पय कर्तव्य सिदात स्वीकार करने शास्त्रो से ज्ञान की भिन्नता १५६ मे दोष १४१ ज्ञान की शब्दो से भिन्नता १५३ कुछ अन्य भ्रमो का निराकरण १४२ जीव मे कटस्थ नित्यता समव नही १४३ ज्ञान की पुद्गलादि द्रव्यो से भिन्नता १५७ आत्म। कचित् नित्यानित्य है १४४ ज्ञान की अध्यवसानो से भिन्नता १५७ वस्तु अनेकान्तात्मक है जीव निश्चय से आहारक नही अनित्यैकात में दोषोभावन १४४ निश्चय से जीव पर का त्यागग्रहण वस्तु मे अनेतात्मकता स्वत. सिद्ध है १४५ नहीं करता। १५८ निमित्त दृष्टि से जीव कर्म को करता व्यवहार मे पर वस्तु का त्याग-ग्रहण १५८ हुआ भी तन्मय नही होता स्वीकृत है। १४६ दृष्टात पुरस्सर उक्त कथन का निश्चय से शारीरिक लिग (वेश) समर्थन मुक्ति मार्गनही । निश्चय नय से आत्मा स्वय रागी या वस्तुत रत्नत्रय ही मुक्ति मार्ग है १६० मुखी दुखी बनता है एव स्व का ही आत्म सबोधन १६० शाता दृष्टा है। १४७ व्यवहार नय मुक्ति मार्ग मे द्रव्यउल्लिखित कथन का दृादात द्वारा लिग स्वीकार करता है। १६१ समर्थन १४८ क्रिया निरपेक्ष ज्ञान नय एव ज्ञान व्यकार नय में उगत्मा अन्य द्रव्या निरपेक्ष क्रिया नय से मुक्ति नहीं का ता दाटा है। मिल सकती १६३ अन्य व्यवहार कत्तव्य का स्पष्टीकरण म वित्त को कौन प्राप्त करता है ? निश्चय से पर के अकत्तं त्य का अत मगल समर्थन १५० प्रशस्ति १६४ 'ह १४४
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy