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________________ ५३ दृष्टात Sxc १० शंका समाधान शंकासमाधान-जीव कर्मबद्ध है दृष्टांत द्वारा समाधान का समर्थन ५३ या अबद? जीव कर्मों का कर्ता उपचार कर्मबद्धता और प्रबद्धता-दो से ही है. ५३ दृष्टियों है. समयसार नय पक्षो से भिन्न है बध के कारण और भेद समयमार पक्षातिकात है बंध के चार कारणो के तेरह भेद ५४ पुण्यपापाधिकार निश्चय से जीव-स्वभाव का ही कर्ता है. कर्म परिचय उक्त कथन का समर्थन बधक दृष्टि से कर्मों में समानता । सबोधन व्यवहारनय से जीव कर्मों का कर्ता है. दृष्टात द्वारा पुण्य-पाप का निषेध ७१ व्यवहार निरपेक्ष निश्यकात साख्य- मुक्ति के लिये स्वानुभूति का सदाशिवो का मत है. ५८ ___महत्व. निश्चयकात प्रमाण बाधित है ५८ स्वानुभूतिशून्य पुण्य मुक्ति ने जीव-पुद्गलो मे वैभाविक शक्ति सहायक नही. का निरूपण वास्तविक मुक्ति मार्ग क्या है ? निरपेक्ष मान्यताप्रो का निराकरण ५९ बावृत्तियो मे उलझने से मुक्ति नही. जीवो की परणतियां और उनके गुणो मे विकार का कारण । परिणाम. अज्ञानभाव का स्वरूप एवं ६३ कर्मोदय से विकार होता है, असयम व कषाय का परिणाम ६४ विनाश नहीं योग की विशेषता किमाश्चर्यमत परम् ? प्रशानमयी भावो का परिणाम ६४ प्रात्म विकार ही गुणो का बध कब होता है और कब नही? ६५ घात है. मात्मा के रागादि भाव पुद्गल मिथ्यात्व द्वारा सम्यक्त्व की कर्मों से भिन्न है ___हानि. पुद्गल के परिणाम जीव से अज्ञान से शानभाव का पराभव भिन्न है कषाय से वीतरागता की हानि ६७ बंधन-मुक्ति का उपाय निष्कर्ष
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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