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________________ प्रतिज्ञा १ ० ir or . ० n or mr m in so x विषयानुक्रमणिका जीवाजीवाधिकार पृष्ठ शुद्धनय का स्वरूप मगलाचरण एव प्रतिज्ञा दृष्टात द्वारा इसीका स्पष्टीकरण १० जिन शासन का ज्ञाता कौन? ममय का स्पष्टीकरण निश्चयनम की विशेषता स्व-पर समय की वास्तविकता । परमात्मा कौन बनता है? ससारी जीवी की दशा व्यवहार एव निश्चय मोक्षमार्ग ग्रथकर्ता का सकल्प मे नाममात्र कथन भेद. शुद्धनय से आत्म स्वभाव प्रदर्शन व्यवहार मोक्षमार्ग का दृष्टात यहाँ प्रात्मा को शुद्ध किस दृष्टि दाष्टन्ति से कहा गया? शुद्धनय का प्रयोजन जीव की प्रज्ञान (अप्रतिबुद्ध) व्यवहार एव शुद्धनय मे दृष्टिभेद दशा. व्यवहारनय की उपयोगिता अप्रतिबुद्ध दशा का स्पष्टीकरण १३ व्यवहार द्वारा निश्चय में प्रवेश ५ अतरात्मा की शुद्धात्म दृष्टि निश्चय एव व्यवहार की स्थिति ५ अप्रतिबुद्ध दशा की भर्त्सना निश्चयनय के भेद तर्कपूर्ण प्रात्म सबाधन व्यवहारनय के भेद एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उपचरित नय का स्वरूप प्रश्न का समाधान १५ उपचरित नय की स्थिति व्यवहार स्तवन के कारण नय ज्ञान की प्रावश्यकता देहाश्रित जिन स्तवन क्यो? व्यवहार नय की पात्रता निश्चय जिन स्तवन निश्चयनय के प्राश्रय की पात्रता निश्चय जिन स्तवन का स्पष्टीमापेक्ष नय ही सम्यक् ज्ञान के करण प्रतीक निजय जिन स्तवन का प्रथम रूप १७ निश्वर व्यवहार दृष्टि भेद निपचय जिन लवन का द्वितीय रूप १८ तत्व व्यवहार द्वारा सम्यक्त्व निश्चय जिन स्तवन का तृतीय रूप. १८ संप्राप्ति. ६ निश्चय प्रत्याख्यान (त्याग) १८ x m " w w w 9 १५ 9 9 5 १७
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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