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________________ मानवाधिकार ८२ ( १७४ ) बद्ध कर्म उदय मे कब आते है ? एक पुरुष ने बाला कन्या से विवाह कर लिया अकाल-- किन्तु नहीं उपभोग योग्य वह हो जाती बाला तत्काल । यथा समय तरुणी बन बाला होती जब रति करने योग्य-- तब आकर्षण का बनती है केन्द्र वही एवं उपभोग्य । ( १७५ ) त्यों नवीन कर्मों का होते ही संयोग न वे तत्कालफल देने के योग्य कहे है, सत्ता में ही रहें अकाल । जब वे यथा समय अवसर पा उदय भाव को हों संप्राप्त । तब चेतन सुख दुख का अनुभव कर होता बंधन को प्राप्त । ( १७६ ) ज्ञानी के निरास्रव रहने का कारण किंतु सुदृष्टि प्राप्त संज्ञानी-जीव हिताहित अपना जान-- सुख दुख में सम भाव प्राप्त कर रागी द्वेषी बनें न म्लान । इस कारण वह रहे प्रबंधक पालव भाव-रहित अम्लान । रागादिक के असद्भाव में सत्व उदय नहि बंधक जान । (१७६) सत्व-पत्ता।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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