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________________ कर्ता-कर्माधिकार ५४ ( १०८ ) दृष्टांत 'राजा जैसी प्रजा' विश्रुत है जगती पर लोकोक्ति, निदानप्रजा मात्र के गुण दोषों का नृप निमित्त है एक प्रधान । अतः दोष-गुण, उत्पादकता का है ज्यों नृप में व्यवहार । त्यों जीवों में जड़ कर्मो प्रति है कर्तृत्व मात्र उपचार । ( १०६ ) बध के कारण और भेद जैनागम में मिथ्यादर्शन, अविरति एवं योग कषाय । यही चार बंधन के कारण प्रतिपादन करते जिनराय । नमहोता मिथ्यात्व उदय में, हों कषायवश रागद्वेष । अविरति से इंन्द्रियासक्ति, प्रययोगों से चांचल्य विशेष । ( ११० ) बध के चार कारणो के तेरह भेद इनके भेद त्रयोदश, मिथ्या सासादन सम्यक्मिथ्यात्व । प्रविरति समदृक देशविरत वा विरत प्रमत्त इतर विख्यात । करण अपूर्व तथा अनिवृत्तिज सूक्ष्मकषाय और उपशान्त । क्षीण कषाय सयोग केबली ये हैं गुणस्थान निन्ति । (108) विद्युत-विशेषरूप में प्रसिद्ध । (110) निर्भान्त-भांति रहित, ठीक यथार्थ ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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