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________________ नर नीलचंद के कमा पति बाजचंद, सवरे बसंत की सपपकियो चाहिये । x बरननु करि सब परन को, परषु सकल समुझाई । अमर शत सम रूप के, भाषा अन्धु बनाइ ॥ १५ ॥ पास जब प्रैसो भयो, मासु बैठी चित्त । तब अमरु शत के करे, माषा प्रगट कवित्त ॥ १५ ॥ संवत् सत्रह बरस, बीती है जहं वील । द्वैज पोष वदि पास रवि. पृथ्य नक्षत्र को ईस ॥ २१ ॥ अन्न पुरुषोत्तम भाषा करयो, लखि मरवानी पंध । इति भी सिगरथी है भयो, अमरु शतक यह ग्रन्थ ॥ १३२ ॥ लेखन काल-संवत् १७२६, वर्षे फागुण वदि १०, हिने शनिवारे, महाराजाधिराज महाराज श्री अनूपसिंहजी विजय राज्ये, मथेन राखेना लिखनं । प्रति-पत्र १८ पं० -- अ० --- माइज [स्थान- संस्कृत लाइब्ररी] (२) (प्रेम ) शतक । दो। १०४। श्रादि ॐ नमो त्रैलोक्यमै, प्रानाकर करतार | प्रेमरूप उद्धरन । जग, दयासिंधु अवतार ॥ १॥ इक्क लहे पति लोक विस, सचेव बहि निसि जनिन । धाउंबर मचि प्रेम को, रग्यौ महम्मद लगि ॥ २ ॥ उर समद मथि शान वर, काटे सात रतन्न । फेम हेम कुदन करत, पुरे जतन जतन्न ॥ ४ ॥ इति शुमम ।। लेखनकाल-१७ वीं शताब्दी ।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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