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________________ इति श्रीगोस्वामि श्रीनिवास पौत्र मोस्वामि जगन्निवास पुत्र गोस्वामि बनार्दनभट्ट विरचित भाषा व्योहार निर्णय संपूर्ण। पद्य संख्या ६५०, पत्र ३३, [अनूप संस्कृत लाहोरी } (8) शिक्षा सागर । रचयिता-जान । रचना काल-संवत् १६५५ रोहा-२४३ । पादिअब सिख्या सागर लिख्यते । प्रथम करता समरिये, दूजे नवी रसूल । पीले प्रत्यर कीजिय, सो जय होइ कबूल ॥ १ ॥ मन्धनि के मति जान करि, देउ सबनि को सील । विष सम लगै भ्यान की, म्यानी जैसी इस ॥ १ ॥ कोउ ना ठहराम है, लग काल की बार । जग हैं केते चलि गये, राजे राया राइ || २४२ ॥ सोलसे पंचान, अन्ध कायौ या जान । "सिख्या सागर" नाम धरि, बहु विधि कियौ पनि ॥ २४ ॥ इति श्री कृषि जान कृत सिख्या सागर संपूर्ण। लेखनकाल-संवन् १७८६ वर्षे फाल्गुन मासे कृष्ण पक्ष १२ कर्मवाट्या लिखित पं० भवानी दासेन श्री रिणिपुरे । प्रति-पत्र पंक्ति-१७ | अक्षर-५० माइज १०४५ विशेष प्रस्तुत ग्रंथ के कई दोहे बडे शिक्षा प्रद हैं. निरमल राखो मन पुकर, पचल भ्यान करतार । पाप मल ते मंजि है, दे लालच पुख बार ॥ २२ ॥ पान पुन्य निस दिन करे, हित सो गहै पुरान । नहिं छुए पर नार को, यहु सेवा है पान |॥ २५ ॥ [अभय जैन प्रन्यालय ]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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