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लखीराम यह कहिये काही । नानारूप सु पवनही पाही । त्यों सब जगत अकेलो धापू ।
आयु कहे जग लागे पापू ॥ ६१ ॥ लेखनकाल-संवत् १७८४ । प्रति- गुटकाकार।
[स्थान- कविराज सुखदानजी चारण का संग्रह ] ( ६ ) योग वाशिष्ठ भाषा । रचयिता-छजू ।
श्रादि
आदि के पत्र नहीं हैं।
अन्त
गहज भने मन भावही, उपजे सहज विचार । भाषा जोग वाशिष्ठकी, मून दिखावै सार ॥ १ ॥ जन्म मरया ते छूटही,सब दुख कबहु न होइ ।
सह जि तत्व पिछानिये, हरि पद पावै सोह ॥ २ ॥ इति श्री जोग वाशिष्ठ भाषा छजू क्रिति दसमोण्यायः ।। प्रति- पत्र २ से २५ । पंक्ति ७ । अक्षर २५ । साइज 1 x ३||
[स्थान- अभय जैन ग्रंथालय } ( ७ ) वेदान्त निर्णय । रचयिता-चिदात्मराम । गद्य । आदि
प्रनम्य परमात्मानं सदगुरु चरण नमामिहं । त्रिधा पद निर्णयं च बुद्धया अनुसार रंच प्रोक्त ।। प्रथम प्रम सुन्यं निरलंभ वट बाजस्वयं ब्रह्मा
अद्वैत्या तां ब्रह्माश्रिता माया गुणस्यां । माया ते अति शूक्ष्म है गुणस्यांम माया का है ते कहिये जाविषैतीनि गुण