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________________ बैसाख पदी ५ सुक्रवार लखतं गांव भादासरमध्ये वैष्णु श्री चत्रभुजदासजी, लिखावतं श्रीखुदाइजी श्रीपरमजी स्ववाषनार्थम् सं० १६०२ श्रीरस्तु कल्याणमस्तुशुभं भूयात प्रति-पत्र ७५ । पं०१२। अ० ३० । साइजहाशा [स्थान- अनूप संस्कृत पुस्तकालय] (३ ) द्वादस महावाक्य । रचयिता-प्रज्ञानानंद । पद्य १२१ । पादि मीमांसा प्रतिपादक कर्म विन करनी सर्व वाते मर्म । देह वीच सौ करै म पाय, मीमांसा धैसे ठहरावे । विन बोये कैसे फलपावै, विन खाये कोऊ न अधावै ॥१॥ म-य वेद वेद प्रति है पद तीन, तिनको अरथ मुनी प्रवीन । द्वादश महावाक्य सिंघात, सुनित ही जाय वीजकी भांति ॥३१॥ ग्रेह लैयो रपवेद सुनायौं, प्रधानानंद ब्रह्म कहि गावै । तीन पद रघुवेद वखान्यो, प्रज्ञानानंद ब्रह्म सत्य करि मानौ ॥३६॥ अन्त सोहं रुपा सर्व प्रकासी, कवल अज सुक्रिय | अविनासी श्रेक साचो पायो, अर्थ विवेकी जाने सही ॥१२१॥ इति द्वादस महावाक्य ममाता ।। ( उपरोक्त गुटके में पत्रांक ५१ से ५६५ ) नोट-इस गुटके में अक भगवानदास निरंजनी रचित अमृतधारा, अनाथकृत बिचारमाला, कथीर की साखी, जगजीवनदासजी की बाणी, चतुरदास कृत भागवत अकादश स्कंध भाषा, तुलसीदाम ग्रंथ संग्रह, लालदास कृत इतिहास भाषा, मनोहरदास निरंजनी रचित ज्ञान मंजरी (पद्य ४०४), वेदान्त महावाक्य, ज्ञान चूर्ण वचनिका, शत प्रश्नोत्तरी, ग्रंथ चतुष्टय, सुंदरदास कृत ज्ञान समुद्र के अतिरिक्त निम्नोक्त संतों के पद हैं
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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