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माष बदि बाट जो महीना पुनि पाम है। सुम बुधवासह मुपलु सुम घरी पुनि, महा सुम नखतु निपट सुम नाम है। करो तहा ख्यालु पुरुषोत्तम बनाइ करि । भरो याको नीको हनुमानदूतु नाम है ।
सीता की ताकी अधिक, सीता की सुधि पाई । वाज बहादुर चंद को, मो दयाल रखुराई ॥ १०० रामायनु कीनौ हुतौ, वालमीकि बुधि लाइ । पुरुषोत्तम सुनि कह कथा, कीनी भाषा मा ॥ १०१ साहसकृत सौं कहत है, सुरवानी सब कोई । ताने भाषा मैं कथा, की प्रसिद्ध जग होइ ॥ १०२ हनुदूत को जो मुने, केधौ पदे बनाइ । तासौं कविता सौं सदा, राजी रहे रखगई ॥ १०३ कवि पुरुषोत्तम है कियो, रामायन को नतु ।
इति श्री सिगरी है भयौ, हनुमान दुत्ततु ।। १०४ . इति-संपूर्ण । प्रति-पत्र १३, पं०११, अक्षर ३५, साइज १०४४
[स्थान- अनूपसंस्कृत पुस्तकालय ]