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________________ आदि मध्य अन्त आदि ( 14 ) (१४) मोगलपुराण- लेखनकाल सं० १७६२ को स्वामी भूमंडल कथं प्रवाय । उत्पत्ति षष्ट (ष्टि) का क्यू कर हुवा वखाय । केनी परती केवा श्राकाश | केना मंदिर मेघ कैलास | नाम एक वृक्ष है । सुमेर पर्वत के दक्षिणे भाग जम्बू जैसे अरु एक लाख जोजन जम्बू वृक्ष का विस्तार है । महाराजा नांही राजा अधर्मी हों हिगे । प्रथम प्रमाण इति कलजुग एते धणीरौ निरणौ । प्रति- पत्र ६ । ले० सं० १७६२ ( १५ ) शिवरात्रि - [ स्थान- स्वामी नरोत्तमदासजी का संग्रह ] अथ सीवरात्रिनी पोथी लिख्यते । इसवर वरत सामल चित घरी जामें पाय जनम ना हरि । सुतां छूटे भवनां पाप, सुणतां सयल टले संताप | गणपती प्रसिद्ध बुध धणी मागु सुबध दीजो सुख घणी । पुजू अगर कपूर घनसार, वीध सं धरचु ं पूजा अपार |२| X X X ब्रह्मा पुत्री सारदमाय सुख सेवा करे सुमाय । हंसवाहणी मृगलोची मात, कासमोर केलास विख्यात । X X X goat मांडव नगर सुभंग, सोमनाथ तिहां तीरथ गंग । वसे नगर ते अति विस्तार, वरया वरण न लामे पार |१६|
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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