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________________ ( २३ ) १७६ १५ १७६ वीरमाण अक्षय प्रणमीद वंदु नाम अतिहि विमल, भा बंध बनाय। १६ १७६ २१ १७६ पृ. पं० अशुद्ध वीमाण १७६ अक्षय प्रणमीह वदु मांझ जतिहि दियाल, भाषा मंद बनाय। हा कहित १७६ भारकई करण १७६ कविमय १७६ २१ वडपान सरसमंद १७६ २२ मान १७६ रचना ये १७६ २४ करू १७६ २५ जिने १७६ २७ भिकाल १७ २८ सुगपाना १८० २ महाष्ट्र १८० बेडाणो वडभुम १८०३ बहों ३ सवस विस्वा १८० पर नवि खेडत पास १८० तिय सतर १८० परद रति विश्नाम १८०८ अनि सब हित भाटई कारण कवियण वड़पात सरस भेद मात रचू नाम करू जिनेश त्रिकाल सुम्यांनो महाराष्ट्र वेडाणो बड ग्राम बसें १८० सका 1 m mk km AAN विद्या पन नवि छोडत पास ॥ १३ ॥ तिण सहर यह दरशन विश्राम अति
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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