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अशुद्ध कनक न धर्यउ पड़ी लड़ाई प्रथम, अप्रान
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कन-कन घेयु परी लराई दो प्राप्त
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जोके कपिला सन दिया केपिला
जाकै कंपिला सनैढिया कपिला ठाऊं
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२२
क्यौ
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०
छदि
छठि
०
वासह
वासरु जामु
०
नामु
०
(ग) कृष्ण काव्य कील तान मादि की लतांन मांझ भवि
चलि हे ली बलम
बल्लम उभार
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थाके रोजी जबन विगरी मरोठा काम साहिब सिंध आठार सी अठौतर विन्दु
नीकरो जी जाय बलिहारी मारोंठ कीमखाव माहिब सिंघ अठारसै अठड़ोतर
अंतिम
बिनु
मऊरण सं०१०
बसत मगन सं०१८०