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पुन्य पसाय सुख लयौ, सीधा बंधित काज । कीनी नंद बहुरी, संपूरण जसराज ॥ ७२ ॥ सतरैसै चवदोतरै, काती मास उदार ।।
की जसराज बहुतरी, वील्हावास मझार ॥ ७३ । इति श्री नंद बहुतरी दृहा बंध वारता समापता । पत्र २, पं० १६, अक्षर ५०,
[अभय जैन ग्रंथालय] ( ५ ) माधव चरित्र । २. जगन्नाथ । सं. १७४४ । जेसलमेर । पादि
॥६॥ श्रीगोपालजी साय जी ॥ श्रीगुणेशायनमः ॥ अथ मात्र चरित्र से वात लिखते ॥
कवित्तमुगट शीश जगमगत, चपल कुंडल हग चंचल । वेणुनाद मुखवाद, माल वणि श्राड निरम्मल || कटि कालिन तन खौर, दौर पग नूपुर रुमझुम । गुन्जहार वनमार, पीत दामिनी जानी तन धन ॥ सिंगार विविध शोभित शुमग, राधा हास विलासबर । गिरिराज धरन तारण हुजन, जगन्नाथ नित ध्यान धरि ॥१॥
इहि माधव कामा चरित, विविध भेद रस हेर । हुइ हरखत जगन्नाथ कवि, कीनो जेसलमेर ॥ ५०६ ॥ जेसलमेर उतंग गढ़, पुर मुरपुर हि समान । तिनिमौं सब जग सुख बसै, ताको करौं बखान ॥ ५१० ॥
कवित्त
कचन वरन उतंग, वंक जानी लंक विराजित । सुरज उरज अति प्राज, भवन पय महिमा गाजत ॥