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________________ शन्त ( १६७ ) घर घर जुबती बनि मोर, गहि गादि निचौरहि । वसन जीनि पुल माजि बाजि, लोचन तिनु तोरहि पटवार वा अकास उदि, सुव मंडलु सबु मंडियै । कहि heart विलास निधि, सु फागुन कागुन इंडियै ॥१३॥ इति बारहमासा वर्णन संपूर्ण । शुभं भवतु । लेखन काल-संवत् १७५० वर्षे मिति श्रावण बदि १४ दिने बीकानेर मध्ये | प्रति-गुटका । पत्र- ४|| | पंति-७ | अक्षर ३५1 [ वृहद् ज्ञान भण्डार ] (१३) बारह मासो | दोहा-१२ । सवैया - १२ । रचयिता - बद्री कवि | आदि चैत मास प्यारे चतुर, गोन करति परदेस प्रिय, आदि यादि वरस को मास । तातें रहत उदास ॥ १ ॥ गावति राग वसन्त बजावति, चावति ही वनिता गुन मैं । कहूं or at eat प्यारे को, श्रागम होतो की धनुरागुन मैं ॥ जब आन परी तिय मो तन हेर, लगी मुसकान सुधा गुन I तब लूट लयौ सुख बारे ही मासके, लाल मिले पिया फागुन मैं || १२ || प्रति- गुटकाकार पत्र ४ । पंक्ति-७ अक्षर-३४ । ( १४ ) बारहमासौ । रचयिता मान [ बहत् ज्ञान भण्डार ! अथ बारह मासौ जिख्यते दोहरो श्रगहन मान समान दुति, जारत सकल सरीर । चलन कहत परदेस पिय, छिन छिन वाटतपीर ॥ १ ॥ सोरठो गवन कियौ नंदखाल, गोकुल तजि मधुरा गए । राधे अ दे साख, काल मई मज माल सब ॥ २ ॥
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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