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जैन साहित्य ( १ ) अनुभव प्रकाश । रचयिता-दीप ( चंद)। १८ वीं शती
श्रादि
अथ अनुभव प्रकाश लिख्यत ।
दाहगगुण अनंतमय परम पद, श्री जिनवर मगवान ।
गेय लवंत है ज्ञान में, अचल सदा जिन पान ॥ गा
परम देवाधिदेव परमात्मा परमेश्वर परमपूज्य अमल अनूपम पाणंदमय अखंडित भगवान निर्वाण नाथ कू नमस्कार करि अनुभव प्रकाश ग्रंथ करों हों। जिनके प्रसादतें पदार्थ का स्वरूप जानि निज आणंद उपजै। प्रथम यह लोक पट द्रव्य का अन्या है । तामे पंच द्रव्य सों भिन्न सहज स्वभाव सतचित आनंदादि गुणमय चिदानंद है। अनादि कर्म संजोग तें अनादि असुद्ध होय रखा है।
यह 'अनुभव प्रकास'झान निज दाय है । करियाको अभ्यास संत सुख पाय है । यामे घर्ष (अपार ) सदा भवि सई है ।
कहे दीप श्रतिकार आप पद को लहै । इति श्री अनुभवप्रकास अध्यात्म ग्रन्थ समाप्त ।
लेखन काल-संवत् १८६३ वर्षे मिति फागुण शितात् द्वितीयायां चंदजवासरे लिख्यतम्, पम तोदयेन श्री।