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________________ ( १०६) श्रलक पोप बरनी कहा, जानी सिंधु समान । जहं बहं पहुंची मोहि मति, तह तह कियो बखान । इति श्रीसीताराम कृत अलख बत्तीसी संपूर्णम । प्रति-पत्र २, पत्राकार, पं० ३२, अक्षर ३८, माइज ५१x१॥ [अनूप संस्कृत पुस्तकालय (१२) उपदेश बत्तीसी-पय-२३-रचयिता-लामी बल्लभ । श्रादि श्रातम राम सयाने मूठे मरम भुलाना । झते २ कर, किसके माई किसके भाई, किसके लोग लुगाई ।। वून किमीका को नहीं तेरा, पापो श्राप महाई ।। ३१ ।। { ४स काया पाया कर लीहा, मुफत कमाई कीजै । गज करें उपदेश बत्तीमी, सतगुभ सीव हणीजे ॥ ३२ ॥ इति उपदेश बत्तीमी लक्ष्मी वल्लभजारी कीधी । लेखक-विहारीदाम लिस्वितं । प्रति-पत्र-३ | स्थान-अभय जैन ग्रंथालय ] । ( १३ ) बतीसी । रचयिता-यालचन्द (लौका गंगादाम शिष्य ) गाथा ३३ । सं० १६८५ दावाली ! अहमदाबाद ।। बालचंद कृत बत्तीसी लिग्न्यतःपादि अजर अमर पद परमेश्वर कुं ध्याये । सकल पतिकहर विमल केवलधर, जाको वास शिवपुर तास सब लाइए । नाद, किंतु, कप, रंग, पाणि पाद. उत्तमांग.
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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