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श्रलक पोप बरनी कहा, जानी सिंधु समान ।
जहं बहं पहुंची मोहि मति, तह तह कियो बखान । इति श्रीसीताराम कृत अलख बत्तीसी संपूर्णम । प्रति-पत्र २, पत्राकार, पं० ३२, अक्षर ३८, माइज ५१x१॥
[अनूप संस्कृत पुस्तकालय (१२) उपदेश बत्तीसी-पय-२३-रचयिता-लामी बल्लभ । श्रादि
श्रातम राम सयाने मूठे मरम भुलाना । झते २ कर, किसके माई किसके भाई, किसके लोग लुगाई ।। वून किमीका को नहीं तेरा, पापो श्राप महाई ।। ३१ ।। {
४स काया पाया कर लीहा, मुफत कमाई कीजै ।
गज करें उपदेश बत्तीमी, सतगुभ सीव हणीजे ॥ ३२ ॥ इति उपदेश बत्तीमी लक्ष्मी वल्लभजारी कीधी । लेखक-विहारीदाम लिस्वितं । प्रति-पत्र-३
| स्थान-अभय जैन ग्रंथालय ] । ( १३ ) बतीसी । रचयिता-यालचन्द (लौका गंगादाम शिष्य ) गाथा
३३ । सं० १६८५ दावाली ! अहमदाबाद ।।
बालचंद कृत बत्तीसी लिग्न्यतःपादि
अजर अमर पद परमेश्वर कुं ध्याये । सकल पतिकहर विमल केवलधर, जाको वास शिवपुर तास सब लाइए । नाद, किंतु, कप, रंग, पाणि पाद. उत्तमांग.