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________________ (८) माव पटनिशिका-पद्य-३६ । रचयिता-बानसार । रचनाकाल-संवत् १८६५ का० सु०१। किशनगद । प्रादि শিক্ষা মন্তব্য কন্তু না, গণ অণু গীত। मरि सम नरके गौ, तन्दुस सच विशेष ॥१॥ सर" रस गज- शशि' संक्तै, गौतम केवल लोन । किसनगई चउभास कर, संप्रण रस पीन ॥ ३८ ॥ , प्रति रति भावक आग्रहै, विरची नाव संबंध । रत्नराज गणि शोस मुनि, ज्ञानसार मति मंद ॥ ३९ ॥ अति श्री भाष पट त्रिंशिका समातागतम् । ले०प्र० संवत् १८७५ वर्षे ज्येष्ठ वदि ६ दिवापति वासरे श्री खंभनयर मध्ये हार बाटके लिपिकृतं शीघ्रतरम मुनि रत्नचंद्राय पठनार्थम् । [अभय जैन प्रन्थालय. बीकानेर ] (6) मति प्रबोध छत्तीसी । दोहा-३६ । रचयिता-ज्ञानसार । आदि तप तप तप नप क्यो करै, क तप बातम ताप । बिन नप संयमता भजी, कूर गहने बाप ॥ १ ॥ पहि जिनमत कौ रहिस, दया पूज निममत्व । ममत सहित निम्फल दऊ, यहै जिनागम तत्व ॥ ३५ ॥ मतमबोध पत्रिंशिका, जिन पागम अनुसार। झानसार भाषा मई, रची बुद्ध प्राधार ॥ ३६॥ इति मतिप्रभोध छत्तीसी समाप्ता ॥ [अमव जैन प्रबालब, बीकानेर ]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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