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________________ २४ ] त्रिषष्टि शन्ताका पुमय-चरित्र प्रतिमा-माधुयोंकी बारह प्रनिमायें । १ली प्रतिमा (गच्छसे बाहर निश्चल, अलग रह, एक महीने तक अन्न और पानी की एकदत्ती के द्वारा ही जीवन-निबाह करना। दत्ती अर्थात दान देने वाला सब भोजन या पानी देता हो तब भोजन या पानीकी एक धार हो और उस एक बार में जिनुना यावे उतना ही लेना। चार टूटने के बाद अब न लेना। दूसरी प्रतिमा (दो महीने तक अन्न या पानीको दो दत्ती लेना।) तीसरी, चौथी पाँचवीं, छठी और सातवी प्रतिमाओं में क्रमसे नीन, चार, पाँच छ: और सात दचित्रों अनुक्रमसे तीन, चार, पाँच, छ: और सात महीनों तक ली जाती है। बी प्रतिमा (सान दिन रात तंक एक दिन उपवास और एक दिन थायबिल करना, उपवास चौविहार करना, गाँव के बाहर रहना, चित या करवट लेटकर सोना, तथा उर्दू बैंठकर जो संवा सो सहन करना। वीप्रतिमा (मान रातदिन उसी तरह अवास और प्रायविल करना उन्ह बैठना और टट्टी लकड़ी की तरह सोना!) १०वी प्रतिमा (उतने ही रातदिन, उसी तरह प्रवास व आयंबिल करना,' गोद्रोहनामन या वीरासनमें रहना नया संकुचित होकर बैठना) ११वी प्रतिमा इस प्रतिमा छळ यानी छ समयका भोजना छोड़ना-दो चौवियाहार उपवास और अगले व पिछले दिन एकामन] करना नया एक दिनरात गाँव बाहर हाय लम्वे करके खड़े टुप. ध्यान करना ।) १२ वी प्रतिमा (इसमें अहम यानी चबिहार तीन उपवास और अगले व पिछले दिन एकासन और एक गत नदी किनारे किसी कगार पर खड़े होकर जान्ने न्यकाप बगैर ध्यान करना होता है।) सुचना-दन सायप्रतिमान हकसानु नहीं पाद लम्ता
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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