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________________ .:. : .. श्री अजितनाथ-चरित्र [ ७६३ . . पितामह भी स्वीकार करेंगे।" . सगर राजा दीक्षा लेनेको बहुत उत्सुक थे, तो भी पौत्रके आग्रहसे जगदगुरुको प्रणाम कर, वापस अपने नगरमें गए । फिर इंद्र जिस तरह तीर्थंकरोंका दीक्षाभिषेक करता है वैसे, भगीरथने संगर राजाको सिंहासनपर बिठाकर उसका दीक्षाभिषेक किया, गंधकाषायी वस्त्रसे शरीर पोंछा और गोशीर्षचंदनका विलेप किया। उसके बाद सगर राजाने मांगलिक दो दिव्य वस्त्र धारण किए और गुणोंसे अलंकृत होते हुए भी देवताओंके द्वारा दिए गए अलंकारोंसे अपने शरीरको अलंकृत किया । फिर याचकोंको इच्छानुसारधन देकर उज्ज्वल छत्र और चमर सहित वह शिबिकामें बैठा। नगरके लोगोंने हरेक घर, हरेक, दुकान और हरेक मार्ग बंदनवारों, सोरणों और मंडपोंसे सजाया। मार्गमें चलते हुए जंगह जगहपर देशके और नगरके लोगोंने पूर्णपात्रादि द्वारा उनके अनेक मंगल किए । सगर बारबार देखे जाते थे और पूजे जाते थे, बारंबार उनकी स्तुति की जाती थी और उनका अनुसरण किया जाता था। इस तरह आकाशमें जैसे चंद्रमा चलता है वैसेही, सगर अयोध्याके मध्यमार्गसे धीरे धीरे चलते हुए, मनुष्योंकी भीड़से जगह जगह रुकते हुए, आगे बढ़ रहे थे। भगीरथ, सामंत, अमात्य, परिवार और अनेक विद्याधर उनके पीछे चल रहे थे। इस तरह सगर चक्री क्रमसे प्रभुके पास पहुंचे। वहाँ भगवानको प्रदक्षिणा दे,प्रणाम कर, भगीरथके द्वारा लाए हुए यतिवेपको उसने अंगीकार किया। फिर सारे संघके सामने स्वामीकी वाचनासे, उच्च प्रकारसे, सामायिकका उच्चारण करते हुए सगरने चार महानत
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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