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________________ ___४] त्रिवष्टि शलाका पुन्प-चरित्रः पर्व २. सगं ६ होकर नष्ट हो जानवाल हैं। अहोगसे संसारसे श्रवक्या स्नेह करना ?" इस नरह मराजाने, संसारक बहुत दोष विप्रको बनाकर कार्य किया और बादमें दीक्षा ले ली । (३४2-३४८) __ यह क्या कर वृद्धि प्रयान बोना, ६ प्रभो ! उस साजाने ऋहा वैसे यह संसार जालके समान है। यह बात हम निश्चितन्य मानते हैं, मगर आप दो सब कुछ जानते हैं, क्योंकि श्राप अब शुलमें चंद्रमाके समान हैं।" (३५ ) रियनिक सनान वृद्धिमान दुसरा मंत्रीशोक राज्यको दूर करनेवाली बाण में नृपोटस ऋहने लगा, "पहन इसी भन्न क्षेत्र में एक नगर था। उसमें विवेक बोग गुणोंकी वानके भमान पक राजा था। एक बार वह समाने बैठा था तब छड़ीदाने श्राफर कहा, एक पुन्ध बाहर, श्राकर खड़ा है और वह अपन श्रापकानाचा प्रवासन निपुण बताता है। शुद्ध वृद्धि बाल गजानं उसे दरबार में पानी श्रादा नहीं दी। कारण, "न मायिनामृजूनां चाज शाश्रतवैरिवत् । ऋपटी मनुष्य और सरल मनुष्य आपस में, शाश्वनस्वानाविक शत्रुओं की तरह मित्रता नहीं होती।] इन्कार कर ने बह अटी खिन्न होकर वापस गया। कुछ दिनों बाद बह, शामयी देवनाची तरह व्य अदनकर श्राफाश-मार्ग राजनमाने श्राया। महायान ततयार और भाला थे और सायमें पटनीधी। राजाने उनसे पूछा, "लोन है? चहन्द्री कौन है? और यहाँ किस लिए पाया है?" (३८-३६) उसने उत्तर दिया, "ह गजन ! मैं विद्यावर हूँ। यह
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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