SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 791
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [७६७ उसका उपाय घरमें घुस जाना है और अग्निको बुझानेका उपाय जल है परंतु उछलते हुए समुद्रको रोकनेका कोई उपाय नहीं है।" ब्राह्मण यों कह रहा था, उसी समय देखतेही देखते मृगतृष्णाके जलकी तरह दूरसे चारों तरफ फैलता हुआ जल प्रकट हुआ। (३३०-३४५) - कसाई जैसे उसपर विश्वास करनेवालेका नाश करता है वैसेही, समुद्रने विश्वका संहार किया है। इस तरह हाहाकार ध्वनि हुई। लोग ऋद्ध होकर बोलने और ऊँचे सर कर-करके देखने लगे। फिर वह ब्राह्मण राजाके पास आया और उँगलीसे बताकर करकी तरह कहने लगा, "देखिए, वह डूब गया। यह डूब गया। अंधकारके समान समुद्रके जलसे पर्वत शिखर तक ढक गये। ये सारे वन ऐसे मालूम हो रहे हैं, मानो उन्हें जलने उखाड़ दिया है और इसीसे ये सारे वृक्ष अनेक तरहके जलजंतुओंके समान तैरते हुए मालूम होते हैं। थोड़ी देरमें यह समुद्र अपने जलसे गाँवों, खानों और नगरों इत्यादिका नाश करेगा। अहो! इस भवितव्यताको धिक्कार है। चुगलखोर आदमी जैसे सद्गुणोंको ढक देते हैं वैसेही, उच्छृखल समुद्रके जलने नगरके घाहरके बगीचोंको ढक दिया है। हे राजन ! समुद्र जल इस तरह किले के चारों तरफ क्यारोंकी तरह फैल गया है और उछल उछलकर टकरा रहा है। अब यह फैलता हुआ जल इस फिलेको लांघ रहा है। वह ऐसा मालूम होता है मानो बलवान घोड़ा सवार सहित उसे लांघ रहा हो। देखिए, इस समुद्र के प्रचंड जलसे सारे मंदिर व महल व नगर कुडकी तरह भर रहे हैं। हे गजा! अब यह घुड़सवारोंकी सेनाकी तरह
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy