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________________ बाथा भव-धनसेठ - [अपने मनके अनुकूल आज्ञा सत्पुरुषोंके लिए उत्साहः का कारण होती है। 7 पापसे डरा हुआ हरिश्चंद्र सुबुद्धिके कहे हुए धर्मपर इसी तरह श्रद्धा रखने लगा जैसे रोगसे डरा हुआ आदमी दवापर विश्वास रखता है। (४२०-४२२) ___ एक बार शहरके बाहर उद्यानमें 'शीलंधर' नामके महामुनिको केवलज्ञान हुआ था। उनकी पूजा करनेको देवता जा रहे थे। यह बात सुबुद्धिने हरिश्चंद्रसे कही। निर्मल मनवाला हरिश्चंद्र घोड़ेपर सवार होकर मुनिके पास गया। वहाँ वंदना करके वह मुनिके सामने बैठा। महात्मा मुनिने कुमतिरूपी अंधकारके लिए चाँदनीके समान धर्मदेशना दी । देशना (उपदेश) के बाद राजाने मुनिसे हाथ जोड़कर पूछा, "हे महात्मन् ! मेरे पिता मरकर किस गतिमें गए है ?" त्रिकालदर्शी मुनिने कहा, "हे राजा, तेरे पिता सातवें नरकमें गए हैं। उसके समान मनुष्यके लिए दूसरी जगह नहीं हो सकती।" . यह सुनकर उसके मनमें वैराग्य उत्पन्न हुआ। वह मुनिको वदनाकर, उठा और तत्कालही अपने महलको गया। वहाँ उसने पुत्रको राज्यगहीपर बिठाया और सुबुद्धिसे कहा, "मैं दीक्षा लूँगा। तुम मेरी तरह मेरे पुत्रको भी सदा उपदेशकी . बातें कहते रहना।" सुबुद्धि बोला, "मैं भी आपके साथ दीक्षा लूँगा; मगर मेरा पुत्र आपके पुत्रको धर्मकी बातें सदा सुनाता रहेगा।" फिर राजा हरिश्चंद्र और सुबुद्धिने कर्मरूपी पर्वतका नाश
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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