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________________ ७६२ ] निषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग ६. - व समुद्र जंबूद्वीप भी (हे ब्राह्मण कहने लगे, "हे स्वामी ! जान पड़ता है कि यह कोई नया ज्योतिषी हुआ है, या इसके ज्योतिष शास्त्र ही नए बने हुए हैं, कि जिनके प्रमाणसे यह श्रवणके लिए दुखदाई वचन कहता है कि जगत जलमय हो जाएगा। परंतु क्या ग्रह, नक्षत्र और तारे भी नए हुए हैं कि जिनकी वक्रगतिके आधारपर यह ज्योतिषी ऐसी बात कहता है ! जो ज्योतिपशास्त्र है वे सभी सर्वज्ञके शिष्य गणधरकी रची हुई द्वादशांगीके आधार पर ही बने हुए हैं। उनके अनुसार विचार करनेसे ऐसा अनुमान नहीं होता। ये सूर्यादिक ग्रहों-जो उस शास्त्रके साथ संबंध रखते हैं-के अनुमानसे भी हम ऐसा नहीं मानते । लवण समुद्र जंबूद्वीपमें है वह किसी समय भी (हे ब्राह्मण !) तुम्हारी तरह मोदाका त्याग नहीं करता। शायद आकाशसे या जमीनसे एक नया समुद्र उठे और वह इस विश्वको जलमय करे तो भले करे। यह कोई दुःसाहसी है ! पिशाचका साधक है ! मत्त है ! उन्मत्त है ! स्वभावसे ही वातपीड़ित हैं ! अथवा असमयमै शाख पदा है ! या इसे मिरगीका रोग है कि जिससे उच्छृखल होकर, अनुचित बातें करता है ! आप मेरुकी तरह स्थिर हैं और पृथ्वीकी तरह सब कुछ सहन करनेवाले हैं,इसीलिए दुष्ट लोग स्वच्छदता पूर्वक ऐसी बातें कर सकते हैं। ऐसी बात किसी साधारण आदमीके सामने भी नहीं कही जा सकती है, तो फिर कोप या कृपा दिखानेकी शक्ति रखनेवाले आपके सामने तो कही ही कैसे जा सकती है ? ऐसे दुर्वचन बोलनेवाला वक्ता धीर है ? या जो ऐसे वचन सुनकर गुस्से नहीं होता वह श्रोता धीर है ? यदि इन वचनोंपर स्वामीको श्रद्धा हो तो भले रखें। कारण, त्याग नहीं कर
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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