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________________ . .. . श्री अजितनाथ-चरित्र (५७ में बैठा था, उस समय छड़ीदारने श्राकर विनती की, "कोई पुरुष आया है । उसके हाथमें फूलोंकी माला है। कोई कलाकार जान पड़ता है। वह आपसे कुछ निवेदन करनेके हेतु आपके दर्शन करना चाहता है। वह पंडित है कवि है, गंधर्व है, नटं है, नीतिवेत्ता है, अवविद्याका जाननेवाला है या इंद्रजालिक है सो कुछ मालूम नहीं होता, मगर आकृतिसे वह कोई गुणवान मालूम होता है। कहा जाता है कि जहाँ र दर कृति होती है यहाँ गुण भी होता है।" ( २२०-२२६) - राजाने आज्ञा दी, "उसको तुरन्त यहाँ वुलालाओ कि जिससे वह अपने मनकी बात कहे।" । राजाकी आज्ञासे छड़ीदारने उसे सभामें जाने दिया। उसने राजाकी सभामें इस तरह प्रवेश किया जिस तरह बुध सूर्यके मंडलमें प्रवेश करता है। खाली हाथ राजाके दर्शन न करने चाहिए' यह सोचकर उसने मालीकी तरह एक फूलोंकी माला राजाके भेट की। फिर छड़ीदारके बताए हुए स्थानमें मासन देनेवालोंने उसे एक श्रासन बताया। वह हाथ जोड़कर उसपर बैठा । (२२७-२३०) फिर जरा आँखें विस्फारित कर, हास्यसे ओंठोंको फैला राजाने कृपापूर्वक उससे पूछा, "ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्रं इन चार वर्षों में से तुम किस वर्णके हो ? अंबष्ठ और मागध वगैरा देशोंमेंसे तुम किस देशके हो ? श्रोत्रिय हो ? पौराणिक हो ? स्मात हो ? जोपी हो? तीन विद्याएँ जाननेवाले हो ? धनुषाचार्य हो १. ढाल तलवारके उपयोगमें होशियार हो? तुम्हें माला चलानेका अभ्यास है ? तुम शल्य जातिके शस्त्रोंमें कुशन हो ?
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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