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________________ ४३६] प्रियष्टि शाखाका पुरुष-परित्रः पर्व २. सगं ५. देनकी इच्छा करता का पृथ्वी से बाहर निकल और वसानलनी नरह ऊँची चालायओंवाला बह नागराज नागकुमारोंके साथ रसानन निकलकर ग वहाँ भाया । क्रिष्टिविय. सपाँच गाजाने कोपा दृष्टिले नगरपुत्रों को देखा। इससे प्रागडम यास पनजान है, वही व जलकर गल हो गए। उस समय लोगों में पहला भयंकर हाहाकार हया कि तो श्राचाय और पृथ्वीको भर देना था। कारण, "लोक ज्यादनुकंपाय मानसामपि निग्रहः।" अपराधियांची मुजा मिलनपरभी लोगां दिलाम तो दया स्पन्न होती ही है। इस तरह नागकुमार मगर राजाके माठ हजार पुत्रोंकी मातबाट तार इसी तरह वापिसरला. नुसनं चला गया, जिस तरह मानगो मुरज बनाना है। श्री हेमचंद्राचार्य विरचित त्रिपष्टिशलाका पुनपचरित्र काव्यक मरे पर्वका सगरपुत्रों का नाश नामका पाँचत्रा सर्ग समास दुबा। 덇
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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