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________________ ७२८] त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ५. पर्वतके पास था पहुँचे, जिसमें ऐसी दवाइयाँ हैं कि जिनको देखने मात्रहीसे भूख-प्यास मिट जाती है और जो पुण्यसंपत्तिका स्थानरूप है । (८१-८७) ___ वह अष्टापद पर्वत, बड़े सरोवरोंसे देवताओंके अमृतरसका भंडार हो ऐसा मालूम होता था; सघन और पीले वृक्षोंसे वह श्यामरंगी संध्याके बादलोंवाला हो ऐसा लगता था; पासके समुद्रसे बड़े पंखोंबालासा लगता था; झरनोंसे मरते जलप्रवाहसे ऐसा मालूम होता था मानो उसपर पताकाओंके चिह्न हैं। उसपर विद्याधरोंके बिलासगृह थे, उनसे ऐसा मालूम होता था मानो वह नवीन वैताध्य पर्वत है, हर्पित मयूरों के मधुर स्वरोंसे ऐसा जान पड़ता था मानो वह गायन कर रहा है। उसपर '. अनेक विद्याधरियाँ रहती थीं, उनसे वह पुतलियोंवाले चैत्यसा जान पड़ता था; चारों तरफ गिरे हुए रत्नोंसे ऐसा प्रतीत होता था मानो वह रत्नमणियोंसे बना हुया पृथ्वीका मुकुट हो और वहाँके चैत्योंकी वंदना करनेके लिए हमेशा आनेवाले चारण श्रमणादिकोंसे वह पर्वत नंदीश्वर द्वीपसा मालूम होता था। (८८-२) कुमारोंने उस पर्वतको-जो स्फटिक रत्नमय है और जिसमें सदा उत्सव होते रहते हैं-देखकर सुवृद्धि वगैरा अपने अमात्योंसे पूछा, "वैमानिक देवोंके स्वर्गके क्रीडापर्वतोंमेंसे मानो एक यहाँ पृथ्वीपर उतरा हो ऐसा, यह कौनसा पर्वत है ? और उसपर, आकाश तक ऊँचा तथा हिमालय पर्वतपर रहे हुए शावत चैत्यके जैसा यह जो चैत्य है, इसको किसने बनवाया है ?" (६३-६५) .
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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