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________________ ७१० ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग ४. किए और उसकी सेवा स्वीकार की। महाराजा भरतने विद्याधरोंको, सत्कार सहित विदा किया। "तुष्यंति हि महीयांसः सेवामन्या गिरापि हि ।" . - [बड़े आदमी, मैं आपका सेवक हूँ यह बात सुनकर ही संतुष्ट हो जाते हैं।] (२७०-२७२) · चक्रीकी आज्ञासे सेनापतिने तमिस्रा गुफाकी तरहही अष्टमतप वगैरा करके खंडप्रपाता गुफाका द्वार खोला। फिर सगर राजाने हाथीपर सवार हो, मेरु पर्वतके शिखरपर सूर्य रहता है वैसे हाथीके दाहिने कुंभस्थलपर मरिण रख, उस गुफामें प्रवेश किया। पहले की तरहही उस गुफाकी दोनों तरफ कांकिणी रत्नके मंडल वनाए और पूर्वकी तरहही उन्मग्ना और निमग्ना नामक नदियोंको पार किया। गुफाके मध्यमसे सगर राजा उस गुफाके अपने आप खुले हुए, दक्षिण द्वारमेंसे, नदीके प्रवाह की तरह बाहर निकले । (२७३-२७६) । ... .. फिर गंगाके पश्चिम किनारेपर छावनी डाली। वहाँ नवनिधियोंका ध्यान करके अष्टमतप किया। तपके अंतमें नैसर्प, पांडु, पिंगल, सर्वरत्नक, महापद्म, काल, महाकाल,मानव, और शंख इन नौ नामोंकी नवनिधियों चकवर्तीके निकट प्रकट हुई 2 हिंदूधर्ममें इन नौ निधियों के नाम ये हैं,-महापद्म पद्म, शंख,मकर; कच्छप, मुकुंद, कुंद, नीज वखर्व । ये चौ.कुवेरके खजानकि नाम. वताए गए हैं। श्रीमद हेमचंद्राचार्यने भी 'अभिधान चिंतामणि. के दूसरे कांहके:१०७ श्लोकमें यही निधियाँ दी है, मगर इस श्लोककी टीकाके अंतमें लिखा है, "नेन समये तु नैसर्पाद्या निधयः, यदवोचाम
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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