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________________ ६.२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ४. बंध, करणाभरण, भुजबंध श्रादि आभूपण, बंप और देवदून्यवन राजाको भेट किए ! जिस तरह वार्तिक रसेंद्र देता है (यानी वैद्य जैसे पारा देता है वैसेही ) उसने राजाको मगवतीर्थका जल मेट किया। फिर पद्माकोशके समान हाय लोड़के उसने चक्रवर्तीसे कहा, "इस भरत क्षेत्रकी पूर्व दिशाके प्राँत मागमें, श्रापके एक सामंतकी तरह, में रहता हूँ।" (७१-5) __ चक्रवर्तीन उसे अपना नौकर स्वीकार किया और एक दुर्गपालकी तरह सत्कार करके विदा किया । फिर उगते हुए सूरजकी तरह अपने दजसे दिशाओंको भरते हुए सगर चक्रवर्ती समुद्रसे बाहर निकला और अपनी छावनी में आया। राजाओंमें गजेंद्र के समान उन महाराजन स्नान और देवपूंना फरकं परिवार सहित पारणा किया और वहाँ मागवतीर्थके अधिपनिका अष्टाद्विका उत्सव क्रिया । कारण "स्वामिदत्तमाहात्म्याः खलु सेवकाः ।" [ सेवकोंका माहाल्य-सम्मान स्वामी ही बढ़ाते हैं।] (७-२) उसके बाद सर्व दिग्विजयोंकी लक्ष्मियोंको अर्पण करने में जामिन समान चक्ररत्न दक्षिण दिशाकी तरफ चला । अपनी सेनास पत्रत सहित पृथ्वीको चलायमान करता हुआ चक्रवती दक्षिण और पश्चिम दिशा मध्य मार्गसे चक्रके पीछे चला। समी दिशाओंको विलय करनेकी बढ़ प्रतिज्ञावाला सगर राला मागमें कई राजाश्रीको, वृक्षोंको जैसे पवन उरलाइता है वैसे, गनदियाँस उठाता, कइयों को शालिक पांघकी तरह पुनः राजगद्दीपर बिठाना, कइयोंको कीर्तिम्भ होगसे, नये राजा . . . .
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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