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________________ श्री अजितनाथ-धरित्र [ ७५ धरने, जो स्वयं इस बातचीतका अभिप्राय समझ गए थे तो भी, सारी पर्षदाको ज्ञान करानेके अभिप्रायसे जगद्गुरुसे पूछा, "हे भगवान ! इस ब्राह्मणने आपसे क्या पूछा १ और आपने क्या उत्तर दिया ? इस सांकेतिक बातचीतको साफ साफ सममाइए।" (५८-८६०) ___ प्रभुने कहा, "इस शहरके पास शालिग्राम नामका एक अग्रहार' है। वहां दामोदर नामका एक मुख्य ब्राह्मण रहता था। उसके सोमा नामकी स्त्री थी। उस दंपतिके शुद्धभट नामका पुत्र हुआ। वह सिद्धभट नामके किसी ब्राह्मणकी सुलक्षणा नामक कम्यासे ब्याहा गया। शुद्धभट और सुलक्षणा दोनों जवान हुए। और अपने वैभवके अनुसार यथोचित भोग भोगने लगे। कालक्रमसे उनके माता-पिताका देहांत हुआ। उनकी पैतृक संपत्ति भी समाप्त हो गई इसलिए वे कभी कभी रातको निराहार रहने लगे। कहा है "निर्धनस्य सुमिक्षेपि दुर्भिक्षं पारिपार्धिकम् ।" [ निर्धन मनुष्यके पास सुकालमें भी दुकाल रहता है। शुद्धभट कभी उस नगरके राजमार्गमें विदेशसे आए हुए कार्पिट' की तरह पुराने वस्त्रका टुकड़ा पहन कर फिरता था; कई बार चातक पक्षीकी तरह प्यासा रहता था और कई बार पिशाधकी तरह उसका शरीर मलसे मलिन रहता था। इस स्थितिमें वह अपने साथियोंसे लज्जित होकर, अपनी स्त्रीको भी कहे वगैर दूर विदेश चला गया। उसकी स्त्रीने कुछ दिनोंके बाद वनपात १-दानमें मिली हुई जमीनपर बसा हुश्रा गाँव।२-भिखारी।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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