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________________ १] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग १. विलेपन, फूल और बब्राभूषणोंसे लोग पूजते हैं और दूसरे पायालपर बैठकर लोग पेशाव करते हैं। बताइए इस पापाणन कौनता पाप किया है और उसने कौनसा पुण्य किया है ! यदि प्राणी कमसे पैदा होने और मरते हैं तो पानीमें उठनेवाले जल युद्द किम कर्मम न यार नाश होतं है। जांजबतक इच्छा सहिन प्रयत्न करना है तबतक यह चेतन कहलाता है । नाश हुए चंतनका पुनर्जन्म नहीं है । यह कहना बिलकुल युक्तिहीन है कि, जो प्राणी मरना है वही पुन: जन्मता है। यह सिर्फ पातही बान है। हमार स्वामी शिरीपलुसुमखी कोमल सेजमें साय, कपलावण्यम पूर्ण रमणियोंके साथ निःशंक होकर क्रीड़ा करें, अमृत जैस माज्य व पंच पदायाँका श्रास्वादन करें. ( खाएँ पाएँ.)। लो इसका विरोध करता है उसे स्वामिद्रोही समझना चाहिए। ई न्वामी, श्राप कपूर, अगर, कस्तूरी और चन्दनादिसे मना ब्यान रहें, जिससे आप माज्ञान मुर्गवका अवतार मालूम हो। हे राजन ! नत्रोंको श्रानन्द देनवाले बाग, वाहन, मिले, और चित्रशालाएँ आदि जो पदार्थ हो उनको बार बार दन्धिपाइन्वामी! वीणा, पंगा, मृदंग आदि बाजे और उनपर गाए जानेवाले मधुर गीतांक शन्द श्राप कानोंके लिए निरंतर रसायन रूप बनें । जवनक जीवन है तवनक विषयोंके मुम्बका सेयन कीजिए। धर्मकार्यकं नामले बेकायदा तकलीफ न उठाए। (टुनिया ) धर्म-भवनका कोई फल नहीं है।" । (३२४-३४५) बभिन्नमनिकी बातें सुनकर स्वयंढने कहा, "विश्कार, है ! उन नान्तिक लोगोंको जो अपने और पराग सबको,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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