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________________ ६६८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र: पर्व २ सर्ग ३, अनीक, प्रक्रीणं, श्रामियोगिक और किल्विपिक नामक इस प्रकार के देवता रहते हैं । सानानिक वगैरा देवताओं के नो अधिपनि है वे समी इंद्र कहलाने हैं। इंद्र के समान ऋद्धिवाने होते हुए भी तो इंद्रपनसे रहित है व सामानिक देवना कहलाते हैं। नो ईवक मंत्री और पुरोहिना समान है व त्रायविंश देवता कहलाने हैं। जो इंद्र के मित्रों के समान है । पापद्य देवता ऋहलाते हैं। इंद्रकी रक्षा करनेवाले श्रात्मरक्षक देव कहलात है। देवलोककी रक्षा करन लिए रक्षक बनकर फिरनवान्त लोकपाल कहलाने हैं। सैनिकका काम करनेवाले लोकपाल देव कहलाते हैं। प्रजावगंक समान जो देव है वे प्रवीण देवता कहलाते हैं। नों नौगांका काम करनवाल है व श्रमियोगिक देव कहलाते हैं। जो चाहाल जातिक समान है ये किन्विष देव कहलाते हैं। ज्योनिक और व्यंतर देवाने त्रायचिश और लोकपाल देव नहीं हो । (23-06) ___ "सौधर्मकन्यमें बीस लान्त्र विमान हैं, ईशान देवलोकमें अट्ठाइस लाख विमान है. मननमारम बारह लाख विमान है, माद में पाठ लाग्य विमान है, ब्रह्मदेवलोक चार लाग्य है, लानक देवलोक पचास हजार है. शुक्र देवलोकमें चालीस हजार, सहन्नार देवतांकने छः हजार है, नवें श्रीर दसवें लांक मिलाकर चारसी और धारण तथा अच्युत देवलोक्रके मिलाकर तीन मी विमान है। प्रारंमत्र तीन वयकोंमें एक सोन्यारह विमान है. मध्य नीन ग्रंयकामें एक सी सात विमान है और अंत नीन याममा विमान हैं। अनुत्तर विमान पांच ही है। इस नुवह सब मिलाकर चौरासी लान्त्र
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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