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________________ ६६२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व ३. सर्ग ३. गूढईत, धनदंत, श्रेष्टदंत और शुद्धत नामके चार अंतरद्वीप इंशान वगैरा त्रिदिशाओंके क्रमसे हैं । इसी तरह शिखरी पर्वत पर भी अट्ठाईस द्वीप हैं। इस तरह सब मिलाकर छप्पन अंतरद्वीप हैं। (६४-७०) मानुपोत्तर पर्वतके बाद दूसरा पुष्कराध है । पुष्कराके चारों तरफ सारे द्वीपोंसे दुगना पुष्करोदक समुद्र है। उसके बाद धारणीवर नामक द्वीप और समुद्र हैं, उनके बाद क्षीरवर नामक द्वीप और समुद्र हैं। उनके वाद घृतवर नामक द्वीप और समुद्र हैं। उनके वाद इक्षुबर नामक द्वीप और समुद्र है। उनके बाद आठवाँ, स्वर्गक समान, नंदीश्वर नामक द्वीप है। यह गोलाई और विस्तारमें एक सौ तिरंसठ करोड़ चौरासी लाख योजन है। वह द्वीप अनेक तरहके उद्यानोंवाला और देवताओंके लिए उपभोगकी भूमिके समान है। प्रभुकी पूजामें उत्साह रखनेवाले देवताओं के आवागमनसे ( वह और भी अधिक सुंदर है। इसके मध्य प्रदेशमें पूर्वादि दिशाओंमें अनुक्रमसे अंजनके समान वर्णवाले चार अंजन पर्वत हैं । वे पर्वत नीचेसे दस हजार योजनसे कुछ अधिक विस्तारवाले हैं और ऊपरसे एकहजार योजन विस्तारवाल हैं। इसी तरह क्षुद्र मेरुके समान (यानी पचासी हजार योजन) ऊँचे हैं। उसके पूर्वम देवरमण नामका, दक्षिणमें नित्योद्योत नामका, पश्चिममें स्वयंप्रभ नामचा और उत्तरमें रमणीय नामका-इस तरह चार अंजनाचल हैं। उन पर्वतोपर- प्रत्येकपर सौ योजन लंबे, पचास योजनचाहे और वहत्तर चोजन ऊँचे अहंत भगवानके चेत्य है । हरेक चैत्यमें चार चार दरवाजे हैं। वे प्रत्येक सोलह योजन
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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