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________________ श्री अजितनाथ-चरित्र [ ६५५ ठीकरी एक हजार योजन मोटी है । वे नीचे और ऊपरसे दस हजार योजन चौड़े हैं। उनमें तीन भागोंमेंसे एक भागमें वायु है और दो भागोंमें जल है। उनका आकार कोठे विनाके बड़े मटकोसा है। उन कलशों में काल, महाकाल, वेलंच और प्रभजन नामके देवतः अनुक्रमसे अपने अपने क्रीड़ास्थानों में रहते हैं। [इन' चार पातालकलशोंके अंतरमें-एक कलशसे दूसरे कलशकी दूरीके बीच में-सात हजार आठ सौ चौरासी छोटे कलश है। वे एक हजार योजन भूमिमें गहरे तथा बीचमें चौड़े हैं। उनकी ठीकरी दस योजन मोटा है । उनका ऊपरका व नीचेका भाग एक एक सौ योजन चौड़ा है। उनके मध्यभागका वायुमिश्रजल वायुसे उछलता है। इस समुद्र की अंदरूनी लहरोंको धारण करनेवाले बयानोम हजार नागकुमार देवता, रक्षककी तरह, हमेशा वहाँ रहते हैं। बाहरी लहरोंको धारण करनेवाले बहत्तर हजार देवता हैं और मध्यमें शिखापरकी दो कोस तक उछलती हुई लहरोंको रोकनेवाले साठ हजार देव हैं। उस लवण समुद्रमें गोस्तूप, उदकाभास, शंख और उदकसीम, इन नामोंके अनुक्रमसे सुवर्ण, अंकरत्न, रूपा और म्फटिकके चार वेलंधर पर्वत हैं। उनमें गोस्तूप, शिवक, शंख और मनोहृद नामके चार - - - १-कोष्ठकमें दिए हुए कलशोंकी संख्या गुजराती अनुवाद में है; मगर श्री नधर्म प्रसारक सभा भावनगर द्वारा प्रकाशित, सं० १९६१ की संस्कृत श्रावृत्तिमें इस श्राशयका श्लोक नहीं है ! जान पड़ता है कि छट गया है। गुजराती अनुवाद भी जैनधर्म प्रसारक सभा भावनगर, नेही प्रकाशित किया है।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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