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________________ त्रिषष्टिशक्षाका पुरुप परिन: पर्व २. सर्ग ३. Amante दस योजन छोड़ देने के बाद बचे हुए वीचके अस्सी योजनमें व्यंतरोंकी दूसरी आठ निकायें-जातियाँ हैं । उनके नाम हैंश्रप्रज्ञप्ति, पंच प्रज्ञप्ति, ऋषिवादित, भूतवादित, कंदित, महाकंद्रित, कुष्मांड और पचक । हरेकके दो दो इंद्र हैं। उनके क्रमसे नाम हैं: - संनिहित और समान; धातृ और विधातृक; ऋषि और ऋषिपाल ईश्वर और महेश्वरः सुत्रत्सक और विशाल; हास और हासरति; श्वेत और महाश्वेत; पचन और पचकाधिप । ( ५२४-५२८ ) "रत्नप्रभाके तलके ऊपर इस कम आठ सौ योजन जानेपर ज्योतिष्क मंडल आता है । प्रथम तारे हैं। उनसे दस योजन ऊपर सूरज है। सूरजसे अस्सी योचन ऊपर चाँद है। चाँदसे बीस योजन ऊपर ग्रह हैं । इस तरह एक सौ इस योजन विस्तार में ज्योतिर्लोक है । जंबूद्वीपके मध्य में मेरुपर्वतसे ग्यारह सौ इक्कीस योजन दूर मेरु पवतको नहीं छूता हुआ, मंडलाकारमें, सभी दिशाओं में व्याप्त ज्योतिष चक्र फिरा करता है । केवल एक धुत्रका तारा निश्चल रहता है। वह ज्योतिषचक्रलोकके अंतिम भागसे ग्यारह सौ ग्यारह योजन, लोकांतको स्पर्श न करते हुए मंडलाकार में स्थित है । नक्षत्रोंमें सबसे ऊपर स्वाति नक्षत्र है और सबसे नीचे भरणी नक्षत्र है। सबसे दक्षिणमें मूल नक्षत्र है और सबसे उत्तर में अभिजित नक्षत्र है । ६४६ ] ' "इस जंबूद्वीपमें दो चाँद और दो सूरज हैं । कालोदधिमें बयालीस चाँद और बयालीस सूरज हैं । पुष्कारार्द्धमें बहत्तर चाँद और बहत्तर सूरज हैं। इस तरह ढाई द्वीपमें एक सौ बत्तीस चाँद और एक सौ बीस सूरज हैं। उनमें से हरेक चाँद
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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