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________________ ____६०] विषष्टि शलाका पुन्य-परित्रः पर्व २. सर्ग ३. - जीवका ज्ञान व जाता है उसे द्रानावरणीय कर्म कहते हैं। हान मति, मृत, अवधि, मनःपयाय और केवल-चे पाँच मेह है। इन पाँचांकी नसबानवरणीयक मापी अनं. मार पाँच भेद होने हैं। ( मनिद्रानवरणीय, अन नानावरणीय, अववि ज्ञानावरणीय,मनःपाय दानावरणीय और केवल द्राना: वणीच 1) __(२) दर्शनावरणीय-पाँच निद्राएँ. (निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला श्रीर. म्यानगृद्धि) और चार दर्शन ( चक्षुदर्शन, प्रदर्शन, अवधिदर्शन और कंबलदर्शन) इनको जो दृकता है उस दर्शनावरणीयक्रम ऋत है। ये राजाको देखनकी इच्छा रखनेवाला चौकीदार रोकनेसे राजाको नहीं देख सकता है सही, जिस क्रम उदयस श्रात्मदर्शन नहीं होन है उसे दशनावरणीय कर्म कहत है। (३) बंदनीय-बङ्गकी धारा अग्रमागपर मनु लगा हो और उसका (जीमले चाटकर)बाद लेनमें जो मुन्ट और हुन्न होता है, उसी समान वंदनीयक्रम है। यह मुस्र और. हुन्न अनुमत्रप स्वभावबान्ता होने से वो नरहका है (बाना चंदनीय और अनातावंदनीय)। (2) मोहनीयकर्म-ज्ञानी पुरुषांन मोहनीयकर्मको मदिरा पनि समान बताया। कारण इस कर्मक उदयस माइ पाया हुया (मतवादा ना हया) थारमा अन्य आर. अहत्यको नहीं समनः सकता है। उसमें निध्याट्रिपनक विपाक्रमा करनेत्रान्ता दर्शन मोहनीय कर्म कहलाता है, और. -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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